आश्रय भारत के बारे में


आश्रय भारत फरीदाबाद स्थित एक अलाभकारी, पंजीकृत गैरसरकारी संस्था है, आश्रय भारत फरीदाबाद में पिछले 10 सालों से राज्य की सबसे गंभीर समस्या कन्या भूर्ण हत्या पर काम कर रही है, संस्था लोगो के बीच जाकर कन्या भूर्ण हत्या पर जागरूकता का काम करती है, तथा समाज में बालिकाओ के घटती हुई संख्या पर लोगो का ध्यान केन्द्रित करती, इस जघन्य आपराध के प्रति लोगो को क़ानूनी जानकारी देती है, और समाज में बालिका के प्रति नकारात्मक सोच को बदलना तथा बालिकाओ को पढ़ा-लिखाकर उनको सक्षम बनाने की लिए लोगो को प्रेरित करती है.

Thursday, September 10, 2009

दहेज़ पर्था एक सामाजिक बुराई

आज हमारे समाज में परिणय सूत्र में बंधने वाले दो पवित्र रिस्त्रो का व्यवसायीकरण होता जा रहा है । इस व्यसायिकरण का  कारन है हमारे समाज में भंयंकर रूप लेने वाली दहेज़ पर्था का । पहले तो जब लड़की का विवाह होता था तो उसके माँ-बाप उसके परिवार एवं घर को व्यस्थित करने के लिए प्रेम वश उपहार के तौर पर अनाज एवं बर्तन और लड़की के सौन्दर्य के लिए जेवरात इत्थियादी देते थे। लेकिन अब समय और परिस्थिति बदलने के अनुसार इन उपहारों ने एक पर्था का रूप धारण कर लिया है, अब यह प्रेम वश नही मजबूरन दी जाती है इसके लिए लड़के वाले लड़की वालों पर दबाव डालते है।

आज किस तरह और किन परिस्थियों में लड़की के परिवार वाले  अपनी बेटी के खुशी के लिए उपहार के तौर पर दहेज़ के लिए धन जुटाते है । अगर दहेज़ में दिया गया धन  लडके की परिवार वालों के मन माफिक नही होता है तो लड़की तो ताना मरते है तथा उसको अनेक यातनाएं देते है और पुनः  लड़की को मायके से सामान या धन लेन के लिये दबाव डाला जाता है। अगर लड़की अपने ससुराल  के मन माफिक मांगे पुरी नही करती है तो, लड़की को इतनी यातनाएं दी जाती है कि  या तो लड़की खुदकुशी कर लेती है या फ़िर किसी न किसी तरह उसको दहेज़ की बलि चढाया जाता है ।

इस गंभीर समस्या से निपटने की लिए सरकार ने दहेज़ निषेध कानून के अर्न्तगत दहेज की दोषियों के लिए कड़ी सजा का भी प्रावधान  रखा है लेकिन समस्या जस की तस बनी है। दहेज़ के खिलाप कानून बनाने के बावजूद समाज में बढता लालच एवं उपभोक्तावाद के कारन दहेज़ ने जोर पकड़ा है । समाज में अच्छे आचरण के बजाय सान-सौकत वा आकर्षण की  वस्तुओं के आधार पर प्रीतिस्था    प्राप्त की पर्वृति  बढ़ी है इस कारन लोग विवाह के मौकों पर हैसियत के अधिक खर्च करते है। इस अवसर जहाँ धनी वर्ग धन का पर्दर्शन करते है वही गरीब वर्ग समाज में अपनी लाज बचने हेतु कर्जे में डूब जाता है । समाज में बढ़ रही लालच झूटी सान सौकत गिरे हुए मूल्यों पर प्रहार  करना समाज सुधार के लिए बहुत जरुरी है ।

इस समस्या को हल करने के लिए सरकार तथा बहुत सारी गैर सरकारी संगठन पुरी जोर-शोर से लगे है लेकिन अभी तक कोई कामयाबी नज़र आती दिख नही रही है । आज समस्या इतनी भयंकर है की लोग इस दहेज़ की समस्या से बचने के लिए गर्भ में पल रहे भ्रूण लिंग की जाँच करवा रहे है तथा और भ्रूण कन्या होती है तो ज्यादातर कन्या भूर्ण की हत्या करवा देते है ।
सरकारी आंकडो के अनुसार भारत में पर्तिवर्ष ९,५०० ० महिलाएं दहेज़ की बलि चढ़ जाती है । उत्तर प्रदेश और बिहार में लगातार दहेज़ की भेंट चड़ने  वाली महिलाओं के आंकडो में बढोतरी होती जा रही है तथा बंगलोर भारत ही हाय टेक सिटी होने के बावजूद रोजाना ४ महिलाएं दहेज़ एवं हिंसा की भेंट चढ़ जाती है ।

आज आधुनिक पढ़ा लिखा माँ-बाप अपने बेटी के जन्म से ही उसके दहेज़ के लिए पैसे की बचत कर रहा है तो हम उन असिक्षित माँ-बाप के क्या अपेक्षा करे जिनके लिए दहेज़ एक परम्परा है । एक पढ़े-लिखे माँ-बाप अपनी बेटी किए अच्छी परवरिश, उची  शिक्षा तथा उसके करियर की चिंता छोड़ कर उसकी दहेज़ की चिंता सताने लगती है ।
जरुरत है हमें की लड़कियों के दहेज़ की चिंता छोड़ उनकी शिक्षा  एवं उनके करियर पर जोर दिया जाय , उनको इतना मज़बूत बनाए की वे दूसरो पर आश्रित होने के वजाय ख़ुद अपन पैरों पर खरी हो सकें।

1 comment:

  1. सबसे जरूरी है लडको को संस्कारित करना ,ताकि कन्याओं को सर उठा कर जीने के लिए खुला वातावरण मिल सके

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