जरा सोचिये, अगर आप नवरात्री के मौके पर जिमाने के लिए चलती फिरती कन्या के जगह मूर्तियों का सहारा लेना पड़े। अगर बेटियों का पैदा होने का सिलसिला ऐसे ही चलता रहे तो हो सकता आने वाले दिन ऐसे ही हो । नवरात्रे के मौके पर जिमाने के लिए कन्याओं का ऐसा विकल्प तलासना होगा। ऐसे संकेत पूरे देश से मिल रहे है, देश के लगभग सभी राज्यों में ऐसी ही हालत है। जी हां अपने पुण्य के लिए बेटियों को हम पूजना चाहेंगे और वे हमें नही मिलेगी।
यह किसी की दिमागी कल्पना नही है , प्राकृतिक नियमों के अनुसार स्त्री पुरूष लगभग बराबर की संख्या में होने चाहिए। कम से कम स्त्री तो कम नही होनी चाहिए , लेकिन सचाई क्या है । सन २००१ में स्त्री और पुरुषों की गिनती से पता चलता है की भारत में महिलाओं की संख्या पुरुषो की संख्या की अपेक्षा लगभग ६७ कम है।
जिन्हें जिमाया जाता है अब उम कन्या की संख्या का जायजा ले तो पूरे भारत वर्ष में ६ वर्ष से कम उम्र की लडकियों की संख्या लडको की अपेक्षा लगभग ७३ है । यानि गायब है। ये बेटियों तो विसुद रूप से पैदा नही होने दी गयी या पैदा होने के बाद जिंदगी की उमंगो से इन्हे महरूम कर दिया गया ।
अगर आने वाले दिनों में यही हाल रहा तो कहाँ मिलेगी नौ कन्या, नौ देवी पूजने के लिए और जिमाने की लिए। जमीन पर इसका असर दिख ही रहा है, नही मिल रही है कन्याएं , खासकर छोटे बड़े शहरों और कालोनियों में पहले अष्टमी को कन्याओं को जिमाया जाता था, लेकिन अब कन्याओं के आभाव के कारन अब लोग सस्तामी और सातामी को भी कन्याओं को जिमाने लग गए है। क्योकि अब नौ कन्याये बड़ी मुस्किल से मिल रही है, और यहाँ तक की एक ही बेटी कही घरो में कही दिनों तक जिम रही है । अब नौ के संक्या पर जोर नही है, सात भी मिल जाय पाँच ही मिल जाय उतने से ही काम चलाया जा रहा है। आने वाले दिनों में दो या एक की भी नौबत आ जाएगी।
नवरात्री के मौके पर खासकर देवी के रुपौं की आराधना की जाती है , पर उसके बाद साल भर हम क्या अपनी स्त्री जाती की सुध लेते है। हमें जीवित देवियों की भी सुध ले लेनी चाहिए, वरना हम सिर्फ़ पाठ करते रहेंगे और बेटियों के जिंदगी जिदोजहद करती रहेगी।
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